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9789390373772 666419958c184c5d2a3c7a77 तत्त्वज्ञान का महत्व - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/66646ca5f2e938d3e96c9b29/tattvagayan-ka-matthav.jpg

मन भ्रम से भरा रहता है, और इसलिए हर समय सावधान रहो, जो सिद्धांत सुनो उसको सदा बुद्धि में बिठाये रखो, और इस सिद्धांत को साथ में रखते हुए अपना दैनिक कार्य करो।"  जगद्गुरु श्री कृपालु जी

सभी साधक मानव जीवन के लक्ष्य को पाना चाहते हैं, और फिर भी, जो आत्मनिरीक्षण करते हैं, साधना करते हैं, वे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि आध्यात्मिक उत्थान भी नहीं हो पा रहा है, भगवद्प्राप्ति तो दूर की बात है। हम क्या करें? हम अपने लक्ष्य की ओर तेजी से कैसे बढ़ सकते हैं? जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं कि जब तक सही तत्त्वज्ञान न हो, उसका नियमित रूप से बार-बार चिंतन न हो, दैनिक जीवन में उसको उतरा न जाये, और फिर सही साधना  के साथ उसे प्रैक्टिकल न किया जाये, तब तक कोई भी अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू भी नहीं कर सकता, उसमें प्रगति भी नहीं कर सकता और न ही भगवान को प्राप्त कर सकता है। यह है तत्त्वज्ञान का महत्व, आध्यात्मिक मार्ग के हर मोड़ पर आपको इसकी आवश्यकता पड़ेगी।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज आधुनिक युग में साधकों की समस्याओं को रेखांकित करते हैं और हमें वैदिक सिद्धांत के मुख्य बिंदुओं और उनके द्वारा बताये गए अचूक उपाय का सारांश देते हैं। वे अपने सिद्धांत में हमें बार-बार याद दिलाते हैं कि यह अमूल्य मानव देह बहुत सिमित एवं अनिश्चित काल के लिए मिला है।  मनुष्य की स्मरण शक्ति कमजोर हो गयी है, अहंकार बढ़ गया है, और धैर्य कम हो गया है।

आत्मनिरीक्षण, पुनरावृत्ति और अभ्यास के बिना कोई भी व्यक्ति भौतिक संसार में भी उन्नति नहीं कर सकता, आध्यात्मिक उन्नति तो दूर की बात है। परन्तु फिर भी, जब जागो तब सवेरा।  जब तक मानव देह हमारे पास है तब तक हमारे पास समय है, और मार्ग केवल तत्त्वज्ञान है।

इस प्रकाशन के अंत में श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिए गए दस संक्षिप्त बिंदुओं का सार्थक समावेश, सम्पूर्ण वैदिक सिद्धांत का सार है।

Tattvagyan Ka Mahatv - Hindi
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तत्त्वज्ञान का महत्व - हिन्दी

आध्यात्मिक जीवन का मुख्य आधार
भाषा - हिन्दी

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विशेषताएं
  • क्या हैं नए साधकों की शंकाएँ।
  • तत्त्वज्ञान के लाभ, पुनरावृत्ति, आत्मनिरीक्षण और अभ्यास।
  • निरंतर अभ्यास और आध्यात्मिक प्रगति की कुंजी।
  • कृपालु जी द्वारा वैदिक सिद्धांत का सारांश - दस बिंदुओं में।
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विवरण

मन भ्रम से भरा रहता है, और इसलिए हर समय सावधान रहो, जो सिद्धांत सुनो उसको सदा बुद्धि में बिठाये रखो, और इस सिद्धांत को साथ में रखते हुए अपना दैनिक कार्य करो।"  जगद्गुरु श्री कृपालु जी

सभी साधक मानव जीवन के लक्ष्य को पाना चाहते हैं, और फिर भी, जो आत्मनिरीक्षण करते हैं, साधना करते हैं, वे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि आध्यात्मिक उत्थान भी नहीं हो पा रहा है, भगवद्प्राप्ति तो दूर की बात है। हम क्या करें? हम अपने लक्ष्य की ओर तेजी से कैसे बढ़ सकते हैं? जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं कि जब तक सही तत्त्वज्ञान न हो, उसका नियमित रूप से बार-बार चिंतन न हो, दैनिक जीवन में उसको उतरा न जाये, और फिर सही साधना  के साथ उसे प्रैक्टिकल न किया जाये, तब तक कोई भी अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू भी नहीं कर सकता, उसमें प्रगति भी नहीं कर सकता और न ही भगवान को प्राप्त कर सकता है। यह है तत्त्वज्ञान का महत्व, आध्यात्मिक मार्ग के हर मोड़ पर आपको इसकी आवश्यकता पड़ेगी।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज आधुनिक युग में साधकों की समस्याओं को रेखांकित करते हैं और हमें वैदिक सिद्धांत के मुख्य बिंदुओं और उनके द्वारा बताये गए अचूक उपाय का सारांश देते हैं। वे अपने सिद्धांत में हमें बार-बार याद दिलाते हैं कि यह अमूल्य मानव देह बहुत सिमित एवं अनिश्चित काल के लिए मिला है।  मनुष्य की स्मरण शक्ति कमजोर हो गयी है, अहंकार बढ़ गया है, और धैर्य कम हो गया है।

आत्मनिरीक्षण, पुनरावृत्ति और अभ्यास के बिना कोई भी व्यक्ति भौतिक संसार में भी उन्नति नहीं कर सकता, आध्यात्मिक उन्नति तो दूर की बात है। परन्तु फिर भी, जब जागो तब सवेरा।  जब तक मानव देह हमारे पास है तब तक हमारे पास समय है, और मार्ग केवल तत्त्वज्ञान है।

इस प्रकाशन के अंत में श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिए गए दस संक्षिप्त बिंदुओं का सार्थक समावेश, सम्पूर्ण वैदिक सिद्धांत का सार है।

विशेष विवरण

भाषा हिन्दी
शैली / रचना-पद्धति सिद्धांत
फॉर्मेट पेपरबैक
लेखक जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशक राधा गोविंद समिति
आकार 18 सेमी x 10 सेमी x 0.4 सेमी
पृष्ठों की संख्या 43
वजन (ग्राम) 45

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