Your browser does not support JavaScript!

G-12, G-14, Plot No-4 CSC, HAF Sector-10, Dwarka 110075 New Delhi IN
जे के पी लिटरेचर
G-12, G-14, Plot No-4 CSC, HAF Sector-10, Dwarka New Delhi, IN
+918588825815 https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/621dbb04d3485f1d5934ef35/logo-18-480x480.png" [email protected]
61c0831c96270092fadc63c7 साधन साध्य - होली 2014 - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/61c1c1108b200f5556c6e84f/holi14.jpg

इस बार होली का यह अंक हम सभी को अतीत की स्मृतियों में डुबा देता है। भक्ति तत्त्व को प्रकाशित करने वाले भक्तियोग रसावतार आदर्श जगद्गुरु का कृतित्व और व्यक्तित्व मानस पटल पर उभर आता है। एक असह्य वेदना, एक टीस, एक दर्द का अहसास होता है। एक प्रश्न चिह्न अंकित हो जाता है कि क्या हमारे सर्वस्व, हमारे आराध्य, हमारे मध्य नहीं हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? वे तो भक्ति का ही स्वरूप थे। भक्ति तो भगवान् की शक्ति है और भक्ति का ही प्राकट्य जगद्गुरु रूप में भक्ति-धाम में हुआ और भक्ति-धाम में ही समाहित भी हुआ। यह तो सनातन तत्त्व है। किन्तु भक्ति के साकार स्वरूप का अदर्शन, इसे लीला संवरण कहा जाय या प्रकट लीला का विराम। कोई भी शब्द उपयुक्त नहीं लगता। क्योंकि विश्वास ही नहीं होता कि यह लीला घटित हुई। अत्यधिक संक्षिप्त रूप में प्रकाशित की जा रही है। लेखनी अत्यधिक कठोर हो गई है जो कोमल भावुक भक्तों के आंसूओं की धारा को व्यक्त कर रही है।

Sadhan Sadhya - Holi 2014
in stockINR 70
1 1
Sadhan Sadhya Holi 2014

साधन साध्य - होली 2014 - हिन्दी

भाषा - हिन्दी

₹70
₹100   (30%छूट)


SHARE PRODUCT
प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

इस बार होली का यह अंक हम सभी को अतीत की स्मृतियों में डुबा देता है। भक्ति तत्त्व को प्रकाशित करने वाले भक्तियोग रसावतार आदर्श जगद्गुरु का कृतित्व और व्यक्तित्व मानस पटल पर उभर आता है। एक असह्य वेदना, एक टीस, एक दर्द का अहसास होता है। एक प्रश्न चिह्न अंकित हो जाता है कि क्या हमारे सर्वस्व, हमारे आराध्य, हमारे मध्य नहीं हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? वे तो भक्ति का ही स्वरूप थे। भक्ति तो भगवान् की शक्ति है और भक्ति का ही प्राकट्य जगद्गुरु रूप में भक्ति-धाम में हुआ और भक्ति-धाम में ही समाहित भी हुआ। यह तो सनातन तत्त्व है। किन्तु भक्ति के साकार स्वरूप का अदर्शन, इसे लीला संवरण कहा जाय या प्रकट लीला का विराम। कोई भी शब्द उपयुक्त नहीं लगता। क्योंकि विश्वास ही नहीं होता कि यह लीला घटित हुई। अत्यधिक संक्षिप्त रूप में प्रकाशित की जा रही है। लेखनी अत्यधिक कठोर हो गई है जो कोमल भावुक भक्तों के आंसूओं की धारा को व्यक्त कर रही है।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिआध्यात्मिक पत्रिका
फॉर्मेटपत्रिका
लेखकपरम पूज्या डॉ श्यामा त्रिपाठी
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
आकार21.5 सेमी X 28 सेमी X 0.4 सेमी

पाठकों के रिव्यू

  0/5