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6505a08dbab5856cb926685f दैन्य माधुरी: चतुर्थ अध्याय-प्रेम रस मदिरा - ईबुक हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/6505a08ebab5856cb926686d/4.jpg भक्ति का महल दीनता एवं नम्रता की नींव पर निर्मित होता है, और ये 105 पद इसकी सुंदरता और सजीवता का वर्णन करते हैं। ये पद इस सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गुण को विकसित करने में हमारा मार्गदर्शन करते हैं। भक्ति का अभ्यास करते समय साधक को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसके भीतर अहंकार और नाकारात्मकता भरपूर रूप से है और इन्हें दूर करने के लिए सहनशीलता, दीनता, दूसरों के प्रति सम्मान आदि जैसे दिव्य गुणों को अपनाने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह चौथा अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं। PRM Hindi ebook Ch 4
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दैन्य माधुरी: चतुर्थ अध्याय-प्रेम रस मदिरा - ईबुक हिन्दी

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भाषा - हिन्दी



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विवरण

भक्ति का महल दीनता एवं नम्रता की नींव पर निर्मित होता है, और ये 105 पद इसकी सुंदरता और सजीवता का वर्णन करते हैं। ये पद इस सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गुण को विकसित करने में हमारा मार्गदर्शन करते हैं। भक्ति का अभ्यास करते समय साधक को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसके भीतर अहंकार और नाकारात्मकता भरपूर रूप से है और इन्हें दूर करने के लिए सहनशीलता, दीनता, दूसरों के प्रति सम्मान आदि जैसे दिव्य गुणों को अपनाने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह चौथा अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिसंकीर्तन
फॉर्मेटईबुक
वर्गीकरणप्रमुख रचना
लेखकजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशकराधा गोविंद समिति

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