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9788194589679 61cedbe26726a954d0ea835d भक्ति की आधारशिला ईबुक - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/61cf0bbf518e00295f7554e8/13.jpg

सर्वभूतेषु य: पश्येद्भगवद्भावमात्मन:।

भूतानि भगवत्यात्मन्येष भागवतोत्तम:॥

(भाग. 11-2-45)

सभी प्राणियों के अन्त:करण में हमारे प्राण-वल्लभ श्रीकृष्ण का निवास है अत: अपनी कठोर वाणी, या अपने व्यवहार द्वारा किसी को भी दु:खी मत करो -

पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।

दूसरे को दु:खी करना, सबसे बड़ा पाप कहा गया है। चैतन्य महाप्रभु का भी यही सिद्धान्त है कि भक्तिमार्गावलंबी को दीनता, सहनशीलता, मधुरता का निरन्तर अभ्यास करना चाहिये। यही साधक का आभूषण है। कृपासिन्धु कृपालु गुरुदेव भी यही सिद्धान्त सभी साधकों को दिन-रात समझा रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय में श्री महाराज जी के दिव्य उपदेशों का संकलन किया गया है जिसको बार-बार पढ़ने से हम दीनता, मधुरता, सहनशीलता इत्यादि गुण अपने अन्दर ला सकेंगे जो भक्ति की आधारशिला है।

Bhakti Ki Adharshila - Hindi - Ebook
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भक्ति की आधारशिला ईबुक - हिन्दी

भाषा - हिन्दी



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विवरण

सर्वभूतेषु य: पश्येद्भगवद्भावमात्मन:।

भूतानि भगवत्यात्मन्येष भागवतोत्तम:॥

(भाग. 11-2-45)

सभी प्राणियों के अन्त:करण में हमारे प्राण-वल्लभ श्रीकृष्ण का निवास है अत: अपनी कठोर वाणी, या अपने व्यवहार द्वारा किसी को भी दु:खी मत करो -

पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।

दूसरे को दु:खी करना, सबसे बड़ा पाप कहा गया है। चैतन्य महाप्रभु का भी यही सिद्धान्त है कि भक्तिमार्गावलंबी को दीनता, सहनशीलता, मधुरता का निरन्तर अभ्यास करना चाहिये। यही साधक का आभूषण है। कृपासिन्धु कृपालु गुरुदेव भी यही सिद्धान्त सभी साधकों को दिन-रात समझा रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय में श्री महाराज जी के दिव्य उपदेशों का संकलन किया गया है जिसको बार-बार पढ़ने से हम दीनता, मधुरता, सहनशीलता इत्यादि गुण अपने अन्दर ला सकेंगे जो भक्ति की आधारशिला है।

विशेष विवरण

भाषा हिन्दी
शैली / रचना-पद्धति सिद्धांत
फॉर्मेट ईबुक
वर्गीकरण संकलन
लेखक जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशक राधा गोविंद समिति
आई.एस.बी.एन. 9788194589679

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