रसिक शिरोमणि श्री कृपालु महाप्रभु की हर लीला इतनी रुचिकर व प्रेरणादायी होती थी कि उनके प्रेमी भक्त सुनाने वाले की पात्रता अपात्रता पर बिना विचार किये, सुनने के लिये सदा सर्वदा लालायित रहते हैं। मुझे भी युगल सरकार की अकारण अनुकंपावश शैशवास्था से ही श्री कृपालु महाप्रभु के लोकपावन चरणों की शीतल छाँव में रहने का अलभ्य सौभाग्य तो प्राप्त हुआ ही है। अतः जीवन का हर प्रसंग किसी न किसी प्रकार से उनकी मधुर स्मृतियों से ओतप्रोत है। और वह स्मृतियाँ पग-पग पर उनकी याद दिलाती ही रहती हैं। ये उनकी मुझ अकिंचन पर अकारण करुणा का ही परिणाम है।
अतः प्रायः मैं अपने सत्संगी भाई-बहनों के साथ उनकी चर्चा प्रारंभ कर देती थी तो न मुझे समय का पता चलता था न उन लोगों को कई-कई घंटे ये चर्चायें चलती रहती थीं। अपनी-अपनी पात्रता के अनुसार वे भक्त उनके लीलामृत अम्बुधि में गोते लगाते रहते थे। सोचिये ! क्या होता जब उन श्रोता सत्संगियों के समान मुझ वक्ता का भी अपने गुरुदेव के प्रति उतना ही उच्च भाव होता! अस्तु ।
कृपालु चरित्र एक सुस्वादु रस का अगाध सागर है। कोई जितना चाहे इसका अवगाहन करे, पान करे या उलीच ले उसका सौरस्य कभी कम नहीं होता प्रत्युत् जितना-जितना भावुक हृदय इसमें गोता लगाता जाता है, उसकी मिठास बढ़ती जाती है। समर्था रति के सर्वोच्य लक्षण, जिनको अभी तक महाप्रभु चैतन्य के अतिरिक्त अन्य किसी संत में समग्र रूप से नहीं देखा गया, वे इनमें प्रकट हुए हैं। श्रीकृष्ण प्रेम में अविरल अश्रु प्रवाहित करना, रोना, तड़पना व बिलखना ही प्रेम रस का सार है। ये बात हम श्री कृपालु महाप्रभु की प्रारंभिक लीलाओं के दर्शन श्रवण से जान पाते हैं।
गुरुदेव श्री कृपालु महाप्रभु की चर्चाओं का सतत लाभ लेने की लालसा से व मुझे उनकी करुणा कृपा से धनी मानकर बहुत से सत्संगी, जिनके कर्ण-रंध्र प्रतिपल अपने प्रभु की चर्चा सुनने के लिये दोने के समान खड़े रहते हैं, मुझसे आग्रह करते रहे कि मैं उनकी उन सब लीलाओं को, जो उन लोगों के सत्संग में आने के पूर्व घटित हुई, लिपिबद्ध करूँ। ताकि वह जब चाहें मनचाहा लाभ लेते रहें।
बहुत वर्षों से मैं अपने को इस कार्य के सर्वथा अयोग्य मानने के कारण टालती जा रही थी किन्तु अब जीवन के अंतिम चरण में, जब मैं अपने प्रभु की अन्य कोई भी सेवा करने के योग्य नहीं रह गई, तब ऐसी प्रेरणा हुई कि अपनी जनहितकारी स्मृतियों की अमूल्य निधि को, जिसे मेरे प्रभु मुझे करुणापूर्वक दे कर गये हैं, मैं उसे लिपिबद्ध कर दूँ। यद्यपि उन अविस्मरणीय स्मृतियों से मैंने अपात्रतावश स्वयं तो कुछ विशेष लाभ नहीं उठाया किन्तु कदाचित् वर्तमान व भविष्य में उनके हजारों प्रेमी भक्तों को लाभ हो जायेगा और इस अशक्त व बेकार शरीर से कुछ सेवा भी हो जायेगी। मैंने जो कुछ देखा है या स्वयं सद्गुरु सरकार के मुखारविंद से अथवा उनके प्रिय भक्तों से सुना है उसमें से जैसा व जितना मुझे याद है, आप लोगों की सेवा में श्री महाराज जी की ही प्रेरणा व कृपा से समर्पित कर रही हूँ।
ब्रजबनचरी प्रपन्नाऽहं, सद्गुरु पाद पद्मयोः।
तस्य प्रेरणया तस्य, दिव्यादेशं वदाम्यहम् ॥
इस लेखन में त्रुटियों का होना सर्वथा संभावित है। मैं गुरुचरणानुरागी पाठकों से यह विनम्र निवेदन करना चाहती हूँ कि यह सोचकर कि एक अबोध अबोधता की बात ही तो करेगा, क्षमा कर दीजियेगा और उनकी लीलाओं के माधुर्य का आकंठ रसपान कीजियेगा।
Kripalu Sudha Ras - Vol.1 ebookप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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रसिक शिरोमणि श्री कृपालु महाप्रभु की हर लीला इतनी रुचिकर व प्रेरणादायी होती थी कि उनके प्रेमी भक्त सुनाने वाले की पात्रता अपात्रता पर बिना विचार किये, सुनने के लिये सदा सर्वदा लालायित रहते हैं। मुझे भी युगल सरकार की अकारण अनुकंपावश शैशवास्था से ही श्री कृपालु महाप्रभु के लोकपावन चरणों की शीतल छाँव में रहने का अलभ्य सौभाग्य तो प्राप्त हुआ ही है। अतः जीवन का हर प्रसंग किसी न किसी प्रकार से उनकी मधुर स्मृतियों से ओतप्रोत है। और वह स्मृतियाँ पग-पग पर उनकी याद दिलाती ही रहती हैं। ये उनकी मुझ अकिंचन पर अकारण करुणा का ही परिणाम है।
अतः प्रायः मैं अपने सत्संगी भाई-बहनों के साथ उनकी चर्चा प्रारंभ कर देती थी तो न मुझे समय का पता चलता था न उन लोगों को कई-कई घंटे ये चर्चायें चलती रहती थीं। अपनी-अपनी पात्रता के अनुसार वे भक्त उनके लीलामृत अम्बुधि में गोते लगाते रहते थे। सोचिये ! क्या होता जब उन श्रोता सत्संगियों के समान मुझ वक्ता का भी अपने गुरुदेव के प्रति उतना ही उच्च भाव होता! अस्तु ।
कृपालु चरित्र एक सुस्वादु रस का अगाध सागर है। कोई जितना चाहे इसका अवगाहन करे, पान करे या उलीच ले उसका सौरस्य कभी कम नहीं होता प्रत्युत् जितना-जितना भावुक हृदय इसमें गोता लगाता जाता है, उसकी मिठास बढ़ती जाती है। समर्था रति के सर्वोच्य लक्षण, जिनको अभी तक महाप्रभु चैतन्य के अतिरिक्त अन्य किसी संत में समग्र रूप से नहीं देखा गया, वे इनमें प्रकट हुए हैं। श्रीकृष्ण प्रेम में अविरल अश्रु प्रवाहित करना, रोना, तड़पना व बिलखना ही प्रेम रस का सार है। ये बात हम श्री कृपालु महाप्रभु की प्रारंभिक लीलाओं के दर्शन श्रवण से जान पाते हैं।
गुरुदेव श्री कृपालु महाप्रभु की चर्चाओं का सतत लाभ लेने की लालसा से व मुझे उनकी करुणा कृपा से धनी मानकर बहुत से सत्संगी, जिनके कर्ण-रंध्र प्रतिपल अपने प्रभु की चर्चा सुनने के लिये दोने के समान खड़े रहते हैं, मुझसे आग्रह करते रहे कि मैं उनकी उन सब लीलाओं को, जो उन लोगों के सत्संग में आने के पूर्व घटित हुई, लिपिबद्ध करूँ। ताकि वह जब चाहें मनचाहा लाभ लेते रहें।
बहुत वर्षों से मैं अपने को इस कार्य के सर्वथा अयोग्य मानने के कारण टालती जा रही थी किन्तु अब जीवन के अंतिम चरण में, जब मैं अपने प्रभु की अन्य कोई भी सेवा करने के योग्य नहीं रह गई, तब ऐसी प्रेरणा हुई कि अपनी जनहितकारी स्मृतियों की अमूल्य निधि को, जिसे मेरे प्रभु मुझे करुणापूर्वक दे कर गये हैं, मैं उसे लिपिबद्ध कर दूँ। यद्यपि उन अविस्मरणीय स्मृतियों से मैंने अपात्रतावश स्वयं तो कुछ विशेष लाभ नहीं उठाया किन्तु कदाचित् वर्तमान व भविष्य में उनके हजारों प्रेमी भक्तों को लाभ हो जायेगा और इस अशक्त व बेकार शरीर से कुछ सेवा भी हो जायेगी। मैंने जो कुछ देखा है या स्वयं सद्गुरु सरकार के मुखारविंद से अथवा उनके प्रिय भक्तों से सुना है उसमें से जैसा व जितना मुझे याद है, आप लोगों की सेवा में श्री महाराज जी की ही प्रेरणा व कृपा से समर्पित कर रही हूँ।
ब्रजबनचरी प्रपन्नाऽहं, सद्गुरु पाद पद्मयोः।
तस्य प्रेरणया तस्य, दिव्यादेशं वदाम्यहम् ॥
इस लेखन में त्रुटियों का होना सर्वथा संभावित है। मैं गुरुचरणानुरागी पाठकों से यह विनम्र निवेदन करना चाहती हूँ कि यह सोचकर कि एक अबोध अबोधता की बात ही तो करेगा, क्षमा कर दीजियेगा और उनकी लीलाओं के माधुर्य का आकंठ रसपान कीजियेगा।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | जीवनी |
विषयवस्तु | गुरु - सच्चा आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक |
फॉर्मेट | ईबुक |
वर्गीकरण | विशेष |
लेखक | सुश्री ब्रज बनचरी देवी |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
Best book for increasing love for our Gurudev shree maharaji.Jun 12, 2023 1:11:27 PM