G-12, G-14, Plot No-4 CSC, HAF Sector-10, Dwarka 110075 New Delhi IN
जे के पी लिटरेचर
G-12, G-14, Plot No-4 CSC, HAF Sector-10, Dwarka New Delhi, IN
+918588825815 https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/621dbb04d3485f1d5934ef35/logo-18-480x480.png" [email protected]
6505a0891657ef3fb8b6821d सिद्धांत माधुरी: तीसरा अध्याय- प्रेम रस मदिरा - ईबुक हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/6505a08a1657ef3fb8b68268/3.jpg इन विलक्षण 142 भक्तिपूर्ण पदों में आध्यात्मिकता के आधारभूत सिद्धांतों को जीवंत किया गया है। परमात्मा एवं जीवात्मा के नित्य सम्बन्ध के विज्ञान का विवेकपूर्ण विवरण किया गया है। जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज स्पष्ट करते हैं कि आत्मा का नित्य और निरंतर बढ़ने वाला आनंद संसार से प्राप्त नहीं किया जा सकता। वह तो केवल भगवान से निष्काम और अनन्य संबंध बनाने पर ही प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने इस अध्याय में उस प्रक्रिया को प्रकट किया है जिससे हमारा भगवान् से वह शाश्वत संबंध पुनर्जीवित / जागृत हो सके। इस अध्याय के माध्यम से जगद्गुरु श्री कृपालु जी ने भक्ति को एकमात्र आध्यात्मिक मार्ग के रूप में स्थापित किया है, जो हमें भगवान के पास ले जाने में समर्थ है। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह तीसरा अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं। PRM Hindi ebook Ch 3
in stockUSD 200
1 1
सिद्धांत माधुरी: तीसरा अध्याय- प्रेम रस मदिरा - ईबुक हिन्दी

सिद्धांत माधुरी: तीसरा अध्याय- प्रेम रस मदिरा - ईबुक हिन्दी

भाषा - हिन्दी



SHARE PRODUCT
प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

इन विलक्षण 142 भक्तिपूर्ण पदों में आध्यात्मिकता के आधारभूत सिद्धांतों को जीवंत किया गया है। परमात्मा एवं जीवात्मा के नित्य सम्बन्ध के विज्ञान का विवेकपूर्ण विवरण किया गया है। जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज स्पष्ट करते हैं कि आत्मा का नित्य और निरंतर बढ़ने वाला आनंद संसार से प्राप्त नहीं किया जा सकता। वह तो केवल भगवान से निष्काम और अनन्य संबंध बनाने पर ही प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने इस अध्याय में उस प्रक्रिया को प्रकट किया है जिससे हमारा भगवान् से वह शाश्वत संबंध पुनर्जीवित / जागृत हो सके। इस अध्याय के माध्यम से जगद्गुरु श्री कृपालु जी ने भक्ति को एकमात्र आध्यात्मिक मार्ग के रूप में स्थापित किया है, जो हमें भगवान के पास ले जाने में समर्थ है। भक्ति के इस महान संग्रह / महान निधि, 'प्रेम रस मदिरा' का यह तीसरा अध्याय है। 'प्रेम रस मदिरा' के दिव्य अद्वितीय 1008 भक्ति से परिपूर्ण पद वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि के सिद्धांतों पर आधारित हैं।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिसंकीर्तन
फॉर्मेटईबुक
वर्गीकरणप्रमुख रचना
लेखकजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशकराधा गोविंद समिति

पाठकों के रिव्यू

  0/5