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61c086b4d37a82089600a0b4 साधन साध्य - गुरुपूर्णिमा 2008 - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/61c1c12ec5373b432156412e/gp8.jpg

गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सर्वप्रथम जगद्वंद्य, अकारण करुण गुरुवर के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए आप सभी को हार्दिक बधाई- यह गुरुपूर्णिमा अंक आपके हाथ में है। अब तक ‘अध्यात्म सन्देश’ नाम से यह पत्रिका प्रकाशित होती रही है। 

अब इसका नाम ‘साधन साध्य’ परिवर्तित कर दिया गया है।

पाठक सन्देह न करें कि ‘साधन साध्य’ कोई पृथक् पत्रिका है- वस्तुत: गुरुवर का सम्पूर्ण साहित्य, उनका जीवन, उनके दिव्य प्रवचन, ब्रजरस से ओतप्रोत सरस संकीर्तन साधन-साध्य तत्त्वज्ञान और उसका क्रियात्मक स्वरूप ही है। 

‘साधन साध्य’ पत्रिका प्रकाशित करने का उद्देश्य यही है कि समस्तमनुष्य साध्य शिरोमणि श्रीकृष्ण दिव्य प्रेम प्राप्ति हेतु शीघ्रातिशीघ्र प्रयत्नशील हों तदर्थ किसी रसिक गुरु की शरणागति ग्रहण करके उसके द्वारा निर्दिष्ट साधना करें। 

वास्तव में मानवदेह का साफल्य सद्गुरु मिलन ही है। अत: गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर हम सब अपना सर्वस्व सद्गुरुदेव भगवान् के चरणों में समर्पित करते हुए हरि गुरु सेवा का ही व्रत धारण करें। 

क्षण-क्षण हरि गुरु स्मरण में ही व्यतीत हो, जिससे अन्त:करण शीघ्रातिशीघ्र शुद्ध हो जाय और हमारे रसिकवर गुरुवर दिव्य प्रेम प्रदान कर, हमें मालामाल कर दें।

हरि गुरु कृपा सदा सब ही पर,
अन्तःकरण पात्र पावन कर...

Sadhan Sadhya - Guru Poornima 2008
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Sadhan Sadhya Guru Poornima 2008

साधन साध्य - गुरुपूर्णिमा 2008 - हिन्दी

भाषा - हिन्दी

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प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सर्वप्रथम जगद्वंद्य, अकारण करुण गुरुवर के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए आप सभी को हार्दिक बधाई- यह गुरुपूर्णिमा अंक आपके हाथ में है। अब तक ‘अध्यात्म सन्देश’ नाम से यह पत्रिका प्रकाशित होती रही है। 

अब इसका नाम ‘साधन साध्य’ परिवर्तित कर दिया गया है।

पाठक सन्देह न करें कि ‘साधन साध्य’ कोई पृथक् पत्रिका है- वस्तुत: गुरुवर का सम्पूर्ण साहित्य, उनका जीवन, उनके दिव्य प्रवचन, ब्रजरस से ओतप्रोत सरस संकीर्तन साधन-साध्य तत्त्वज्ञान और उसका क्रियात्मक स्वरूप ही है। 

‘साधन साध्य’ पत्रिका प्रकाशित करने का उद्देश्य यही है कि समस्तमनुष्य साध्य शिरोमणि श्रीकृष्ण दिव्य प्रेम प्राप्ति हेतु शीघ्रातिशीघ्र प्रयत्नशील हों तदर्थ किसी रसिक गुरु की शरणागति ग्रहण करके उसके द्वारा निर्दिष्ट साधना करें। 

वास्तव में मानवदेह का साफल्य सद्गुरु मिलन ही है। अत: गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर हम सब अपना सर्वस्व सद्गुरुदेव भगवान् के चरणों में समर्पित करते हुए हरि गुरु सेवा का ही व्रत धारण करें। 

क्षण-क्षण हरि गुरु स्मरण में ही व्यतीत हो, जिससे अन्त:करण शीघ्रातिशीघ्र शुद्ध हो जाय और हमारे रसिकवर गुरुवर दिव्य प्रेम प्रदान कर, हमें मालामाल कर दें।

हरि गुरु कृपा सदा सब ही पर,
अन्तःकरण पात्र पावन कर...

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिआध्यात्मिक पत्रिका
फॉर्मेटपत्रिका
लेखकपरम पूज्या डॉ श्यामा त्रिपाठी
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
आकार21.5 सेमी X 28 सेमी X 0.4 सेमी

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