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9789380661179 619c915f0da9d22a7a6c68b7 प्रेम रस मदिरा - अर्थ सहित - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/619cc93fa02aa4e3188f523f/prem-ras-madira.jpg

आनंदकंद श्री कृष्णचंद्र को भी क्रीतदास बना लेने वाला उन्हीं का परमांतरंग प्रेम तत्व है तथा यही अन्तिम तत्व है, उसी को लक्ष्य बनाकर प्रेम रस मदिरा ग्रन्थ लिखा गया है। इसमें 1008 पद हैं जिनमें श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन, वेद शास्त्र, पुराणादि सम्मत एवं अनेक महापुरुषों की वाणियों के मतानुसार किया गया है। सगुण-साकार ब्रह्म की सरस लीलाओं का रस वैलक्षण्य विशेषरूपेण श्री कृष्णावतार में ही हुआ है। अत: इन सरस पदों का आधार उसी अवतार की लीलाएँ हैं।

प्रेम रस मदिरा भक्ति रस साहित्य में अद्वितीय है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में कहीं भी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष तथा सकाम भक्ति को किंचित् भी स्थान नहीं दिया गया है।

भक्ति सम्बन्धी शास्त्रीय सिद्धान्तों को अत्यधिक सरल और सरस रूप में प्रस्तुत किया गया है जो सर्वसाधारण के लिये भी बोधगम्य है इसके अतिरिक्त श्री राधाकृष्ण की दास्य, सख्य, वात्सल्य तथा माधुर्य इन चार भावों की लीलाओं का विशद निरूपण है जो वेद, शास्त्र पुराणादि सम्मत है।

इसके द्वारा भगवदचरणानुरागियों साहित्यिकों एवं संगीत प्रेमियों आदि सभी ने अपने-अपने दृष्टिकोण एवं अपनी-अपनी रुचि के अनुसार अपनाकर अपनी-अपनी जिज्ञासा एवं पिपासा शान्त की। रसिकों ने इसे अपनी भाव संवृद्धि सम्बन्धी साधना का अवलम्ब बनाया, साहित्यिकों ने इसमें साहित्यिक समृद्धि को देखा और इसके भाषा सौष्ठव एवं अलंकारों में अपनी तृप्ति पायी। संगीत मर्मज्ञों ने अनेक राग रागिनियों में इसके पदों को बाँधकर रसास्वादन किया एवं कराया।

प्रेम रस मदिरा से ओत प्रोत ‘प्रेम रस मदिरा’ का आज के इस युग में विशेष महत्व है जिससे कलियुग की विभीषिका का सरलता से सामना किया जा सकता है। यह ऐसी मदिरा है जो बेसुध कर देती है। इसके पान करने के पश्चात् युगल दर्शन, युगल प्रेम, युगल सेवा बस यही कामना शेष रह जाती है समस्त सांसारिक कामनायें समाप्त हो जाती हैं।

Prem Ras Madira Vol 1-2 - Hindi Arth
in stockUSD 1000
4 5
प्रेम रस मदिरा - अर्थ सहित - हिन्दी

प्रेम रस मदिरा - अर्थ सहित - हिन्दी

दिव्य प्रेम का अद्भुत रस
भाषा - हिन्दी

$11.96
$20.93   (43%छूट)


विशेषताएं
  • जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित 1008 पदों का यह तीव्र भावानुभूति, संगीतात्मकता और वैयक्तिकता से पूर्ण गीतिकाव्य है
  • यह माधुर्य भाव भक्ति परक ग्रंथ हरि-गुरु भक्ति प्रेमियों की अमूल्य निधि है जो संकीर्तन द्वारा रूपध्यान-साधना पथ पर अग्रसर हैं
  • साधक की अलग अलग मनःस्थिति एवं भाव स्थिति के लिए इसमें सिद्धांत, दैन्य, श्री राधा कृष्ण की बाल-लीला, किशोर, निकुंज, मिलन और विरह जैसे भावों पर आधारित पद 21 माधुरियों में विभक्त किए गए हैं
  • संगीत प्रेमियों के लिए इसमें शास्त्रीय राग-रागिनियों पर आधारित, विविध तालों में अनेक सुमधुर पद हैं
  • साहित्यकारों एवं काव्य प्रेमियों के लिए मधुर-सरस बृजभाषा के ये पद, विभिन्न अलंकारों और छंदों से सुसज्जित, एक उत्कृष्ट कवित्वशक्ति, शब्द-चयनता और रसिक विद्वत्ता का श्रेष्ठ उदाहरण हैं
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प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

आनंदकंद श्री कृष्णचंद्र को भी क्रीतदास बना लेने वाला उन्हीं का परमांतरंग प्रेम तत्व है तथा यही अन्तिम तत्व है, उसी को लक्ष्य बनाकर प्रेम रस मदिरा ग्रन्थ लिखा गया है। इसमें 1008 पद हैं जिनमें श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन, वेद शास्त्र, पुराणादि सम्मत एवं अनेक महापुरुषों की वाणियों के मतानुसार किया गया है। सगुण-साकार ब्रह्म की सरस लीलाओं का रस वैलक्षण्य विशेषरूपेण श्री कृष्णावतार में ही हुआ है। अत: इन सरस पदों का आधार उसी अवतार की लीलाएँ हैं।

प्रेम रस मदिरा भक्ति रस साहित्य में अद्वितीय है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में कहीं भी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष तथा सकाम भक्ति को किंचित् भी स्थान नहीं दिया गया है।

भक्ति सम्बन्धी शास्त्रीय सिद्धान्तों को अत्यधिक सरल और सरस रूप में प्रस्तुत किया गया है जो सर्वसाधारण के लिये भी बोधगम्य है इसके अतिरिक्त श्री राधाकृष्ण की दास्य, सख्य, वात्सल्य तथा माधुर्य इन चार भावों की लीलाओं का विशद निरूपण है जो वेद, शास्त्र पुराणादि सम्मत है।

इसके द्वारा भगवदचरणानुरागियों साहित्यिकों एवं संगीत प्रेमियों आदि सभी ने अपने-अपने दृष्टिकोण एवं अपनी-अपनी रुचि के अनुसार अपनाकर अपनी-अपनी जिज्ञासा एवं पिपासा शान्त की। रसिकों ने इसे अपनी भाव संवृद्धि सम्बन्धी साधना का अवलम्ब बनाया, साहित्यिकों ने इसमें साहित्यिक समृद्धि को देखा और इसके भाषा सौष्ठव एवं अलंकारों में अपनी तृप्ति पायी। संगीत मर्मज्ञों ने अनेक राग रागिनियों में इसके पदों को बाँधकर रसास्वादन किया एवं कराया।

प्रेम रस मदिरा से ओत प्रोत ‘प्रेम रस मदिरा’ का आज के इस युग में विशेष महत्व है जिससे कलियुग की विभीषिका का सरलता से सामना किया जा सकता है। यह ऐसी मदिरा है जो बेसुध कर देती है। इसके पान करने के पश्चात् युगल दर्शन, युगल प्रेम, युगल सेवा बस यही कामना शेष रह जाती है समस्त सांसारिक कामनायें समाप्त हो जाती हैं।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिसंकीर्तन, पद्य / काव्य
विषयवस्तुसर्वोत्कृष्ट रचना, तत्वज्ञान, भक्ति गीत और भजन, रूपध्यान, भगवान के साथ बातचीत, ध्यान और विज़ुअलाइज़ेशन का विज्ञान
फॉर्मेटहार्डकवर
वर्गीकरणप्रमुख रचना
लेखकजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या774
वजन (ग्राम)1579
आकार17 सेमी X 25 सेमी X 5.4 सेमी
आई.एस.बी.एन.9789380661179

पाठकों के रिव्यू

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A must read for all. The day you read his composition you may not like any other author's composed poetry.
Harshita tripathi
Jan 11, 2023 6:28:43 PM
श्री राधाकृष्ण के एक परम भक्त के सुकोमल हृदय की मधुर- अति मधुर झनकारे l केवल निष्काम भक्ति, शुद्ध भक्ति की भाव मधुरिमा l कर्मकाण्ड, वर्ण आदि के प्रपंचों से बिल्कुल दूर । इतनी निष्कमता की द्रौपदी गजराज आदि सकाम भक्तों का नाम तक नहीं लिखा गया है l केवल शुद्ध ब्रजरस ही ब्रजरस । 50-50 मिनट तक भी एक ही गीत गाया जाए तो भी मन भरता नहीं l विशेषकर दैन्य, श्री राधा, श्री कृष्ण, युगल, विरह, होली, रसिया आदि मधुरियों के गीतों में एक के बाद एक पद में रस की वृद्धि ही प्रतीत होती है l कृपालु जी के इन इतने सुंदर गीतो को पढ़कर यही लगता है की सदियों पहले के भक्ति काल के महाकवि भक्तों की परंपरा के वास्तविक रक्षक यहीं हैं I किसी सम्प्रदाय का नाम न लेते हुए भी ईश्वरीय (सत) सम्प्रदाय के परमाचार्य l राधाकृष्ण प्रेम पिपासु जनों को इन सरस गीतों के आस्वादन से वंचित नहीं रहना चाहिए l
प्रमाणित उपयोगकर्ता
Sep 6, 2022 2:20:13 PM
Content of books is amazingly mesmerizing.
प्रमाणित उपयोगकर्ता
Jul 20, 2022 11:47:54 AM
This is the most enlightening book I have ever read! A must have.
Titiksha
Mar 19, 2022 9:36:49 AM