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9789380661131 619c916df5c6de2a29b7db76 कृपालु भक्ति धारा (भाग 1-3) //cdn.storehippo.com/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/619d01b60785448ebe2a4b67/074-books-scattered-table-mockup-covervault.jpg

वेदों शास्त्रों, पुराणों, गीता, भागवत, रामायण एवं अन्यान्य धर्म ग्रन्थों के गूढ़तम सिद्धान्तों को भी जनसाधारण की भाषा में प्रकट करके जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने विश्व का महान उपकार किया है। उनके द्वारा प्रदत्त इस आध्यात्मिक निधि के लिये सम्पूर्ण विश्व चिरकाल तक उनका ऋणी रहेगा। उनके विलक्षण दार्शनिक प्रवचन उन्हीं की दिव्य वाणी में युगों युगों तक जीवों का मार्ग दर्शन करते रहेंगे। उनकी प्रवचन शैली अद्भुत ही है और सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि समय के साथ साथ वैज्ञानिक युग में जैसे जैसे लोगों को शरीर की सुख सुविधायें प्राप्त होती गई वैसे वैसे अध्यात्म में उनकी रुचि दिन प्रतिदिन कम होती गई अत: समय के अनुरूप ही श्री महाराज जी अपने प्रवचन का ढंग बदलते गये।

सन् 1957 में जगद्गुरु बनने के पश्चात् श्री महाराज जी प्राय: दो तीन घन्टा तो बोलते ही थे। कभी कभी छ: सात घण्टा भी धारावाहिक बोलते चले जाते थे। किन्तु धीरे धीरे एक डेढ़ घण्टा एक समय में बोलने लगे। सन् 2005 से तो उन्होंने निराला ही ढंग अपनाया जिससे मन्द बुद्धि वाले भी, बुद्धिमान भी, भक्त भी, संसारासक्त भी, बाल, वृद्ध, युवा सभी तत्त्वज्ञान प्राप्त कर सकें। प्रतिदिन एक दोहा बनाकर उसकी व्याख्या करना प्रारम्भ कर दिया। दैनिक आरती के पश्चात् उनका यह प्रतिदिन का ही नियम बन गया। इन दोहों को वास्तव में ब्रह्म सूत्र का सरलतम रूप ही कहना चाहिये। इतने सरल कि घोर से घोर अपढ़ गँवार भी समझ जाय, किन्तु उनमें छिपा ज्ञान इतना गहरा कि बड़े से बड़ा विद्वान भी नतमस्तक हो जाय उनकी विलक्षण काव्य प्रतिभा के साथ साथ दोहों की व्याख्या सुनकर। इस भक्ति-धारा में अवगाहन करके सभी साधक तत्वज्ञानी बन गये हैं। इस प्रवचन शृंखला को ‘कृपालु भक्ति धारा’ नाम से प्रकाशित किया जा रहा है।

Kripalu Bhakti Dhara (Vol. 1-3) - Hindi
in stock USD 760
1 1

कृपालु भक्ति धारा (भाग 1-3)

समस्त वेदों का सार अत्यंत ही आसान दोहावली के रूप में
भाषा - हिन्दी

$9.12
$14.4   (37%छूट)


विशेषताएं
  • श्री कृपालु जी महाराज द्वारा व्याख्या सहित बनाये गये 180 दोहे
  • वि​भिन्न शास्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित अनमोल दोहों की संक्षिप्त व्याख्याओं का अनूठा संग्रह, प्रत्येक दोहा अपने आप में पूर्ण है।
  • आज के युग में साधना संबंधी मार्गदर्शन प्राप्त करने की एक अनमोल आध्यात्मिक निधि
  • पुस्तक के प्रत्येक भाग में दोहों की अनुक्रमणिका दी गई है।
  • सभी शास्त्रों के संदर्भों का समावेश
प्रकार विक्रेता मूल्य मात्रा

विवरण

वेदों शास्त्रों, पुराणों, गीता, भागवत, रामायण एवं अन्यान्य धर्म ग्रन्थों के गूढ़तम सिद्धान्तों को भी जनसाधारण की भाषा में प्रकट करके जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने विश्व का महान उपकार किया है। उनके द्वारा प्रदत्त इस आध्यात्मिक निधि के लिये सम्पूर्ण विश्व चिरकाल तक उनका ऋणी रहेगा। उनके विलक्षण दार्शनिक प्रवचन उन्हीं की दिव्य वाणी में युगों युगों तक जीवों का मार्ग दर्शन करते रहेंगे। उनकी प्रवचन शैली अद्भुत ही है और सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि समय के साथ साथ वैज्ञानिक युग में जैसे जैसे लोगों को शरीर की सुख सुविधायें प्राप्त होती गई वैसे वैसे अध्यात्म में उनकी रुचि दिन प्रतिदिन कम होती गई अत: समय के अनुरूप ही श्री महाराज जी अपने प्रवचन का ढंग बदलते गये।

सन् 1957 में जगद्गुरु बनने के पश्चात् श्री महाराज जी प्राय: दो तीन घन्टा तो बोलते ही थे। कभी कभी छ: सात घण्टा भी धारावाहिक बोलते चले जाते थे। किन्तु धीरे धीरे एक डेढ़ घण्टा एक समय में बोलने लगे। सन् 2005 से तो उन्होंने निराला ही ढंग अपनाया जिससे मन्द बुद्धि वाले भी, बुद्धिमान भी, भक्त भी, संसारासक्त भी, बाल, वृद्ध, युवा सभी तत्त्वज्ञान प्राप्त कर सकें। प्रतिदिन एक दोहा बनाकर उसकी व्याख्या करना प्रारम्भ कर दिया। दैनिक आरती के पश्चात् उनका यह प्रतिदिन का ही नियम बन गया। इन दोहों को वास्तव में ब्रह्म सूत्र का सरलतम रूप ही कहना चाहिये। इतने सरल कि घोर से घोर अपढ़ गँवार भी समझ जाय, किन्तु उनमें छिपा ज्ञान इतना गहरा कि बड़े से बड़ा विद्वान भी नतमस्तक हो जाय उनकी विलक्षण काव्य प्रतिभा के साथ साथ दोहों की व्याख्या सुनकर। इस भक्ति-धारा में अवगाहन करके सभी साधक तत्वज्ञानी बन गये हैं। इस प्रवचन शृंखला को ‘कृपालु भक्ति धारा’ नाम से प्रकाशित किया जा रहा है।

विशेष विवरण

भाषा हिन्दी
शैली / रचना-पद्धति सिद्धांत
विषयवस्तु अध्यात्म के मूल सिद्धांत, क्यों और क्या?
फॉर्मेट पेपरबैक
वर्गीकरण प्रवचन
लेखक जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशक राधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या 740
वजन (ग्राम) 1118
आकार 16 सेमी X 24.5 सेमी X 4.5 सेमी
आई.एस.बी.एन. 9789380661131

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