पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के दिव्य मार्गदर्शन में विश्व कल्याण एवं शांति को समर्पित जगद्गुरु कृपालु परिषत् एक अन्तर्राष्ट्रीय, रजिस्टर्ड, आध्यात्मिक, चैरिटेबल एवं गैर-लाभकारी संस्था है, जो बिना किसी धर्म अथवा जातिगत भेदभाव के लोकोपकार के अनेक कार्यों, यथा-बालिकाओं के लिए नि:शुल्क शिक्षा तथा निर्धन, असहाय एवं जरूरतमंद लोगों के लिए स्वास्थ्य व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति तथा वैदिक सिद्धांतों के वास्तविक स्वरूप के प्रचार एवं प्रसार हेतु कार्यरत है।
भारत के शीर्षस्थ 500 विद्वानों की सभा, काशी विद्वत्परिषत् द्वारा 14 जनवरी 1957 को मकर संक्रान्ति के शुभ अवसर पर श्री कृपालु जी महाराज को ‘जगद्गुरूत्तम’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
श्री महाराज जी ने वेदों, शास्त्रों एवं पुराणों के गूढ़तम सिद्धांतों को भी जनसाधारण की भाषा में प्रवचन एवं संकीर्तन के माध्यम से जन जन तक पहुँचाकर अपना सम्पूर्ण जीवन जीव कल्याणार्थ समर्पित कर दिया। आपने कोई नया सम्प्रदाय या धर्म नहीं चलाया। आज तक न ही कोई शिष्य बनाया और न ही किसी को कोई गुरु मंत्र दिया।
यद्यपि श्री महाराज जी साकार रूप से हमारे मध्य नहीं हैं किन्तु उनके असंख्य प्रवचन, प्रेम रस से ओत प्रोत संकीर्तन एवं उनकी प्रेरणा से संचालित विश्व कल्याणकारी योजनायें सदैव उनकी उपस्थिति का अहसास कराती रहेंगी।
Jagadguru Kripalu Parishatप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के दिव्य मार्गदर्शन में विश्व कल्याण एवं शांति को समर्पित जगद्गुरु कृपालु परिषत् एक अन्तर्राष्ट्रीय, रजिस्टर्ड, आध्यात्मिक, चैरिटेबल एवं गैर-लाभकारी संस्था है, जो बिना किसी धर्म अथवा जातिगत भेदभाव के लोकोपकार के अनेक कार्यों, यथा-बालिकाओं के लिए नि:शुल्क शिक्षा तथा निर्धन, असहाय एवं जरूरतमंद लोगों के लिए स्वास्थ्य व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति तथा वैदिक सिद्धांतों के वास्तविक स्वरूप के प्रचार एवं प्रसार हेतु कार्यरत है।
भारत के शीर्षस्थ 500 विद्वानों की सभा, काशी विद्वत्परिषत् द्वारा 14 जनवरी 1957 को मकर संक्रान्ति के शुभ अवसर पर श्री कृपालु जी महाराज को ‘जगद्गुरूत्तम’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
श्री महाराज जी ने वेदों, शास्त्रों एवं पुराणों के गूढ़तम सिद्धांतों को भी जनसाधारण की भाषा में प्रवचन एवं संकीर्तन के माध्यम से जन जन तक पहुँचाकर अपना सम्पूर्ण जीवन जीव कल्याणार्थ समर्पित कर दिया। आपने कोई नया सम्प्रदाय या धर्म नहीं चलाया। आज तक न ही कोई शिष्य बनाया और न ही किसी को कोई गुरु मंत्र दिया।
यद्यपि श्री महाराज जी साकार रूप से हमारे मध्य नहीं हैं किन्तु उनके असंख्य प्रवचन, प्रेम रस से ओत प्रोत संकीर्तन एवं उनकी प्रेरणा से संचालित विश्व कल्याणकारी योजनायें सदैव उनकी उपस्थिति का अहसास कराती रहेंगी।
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | स्मारिका |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | विशेष |
लेखक | राधा गोविंद समिति |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 96 |
वजन (ग्राम) | 317 |
आकार | 22 सेमी X 27.5 सेमी X 0.6 सेमी |