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जे के पी लिटरेचर
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9789380661902 619c91789b2efd2adf9b6de5 गुरु भक्ति - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/63848389c51ed47326b09e36/guru-bhakti.jpg

वेद शास्त्र सभी एक स्वर से उद्घोषित करते हैं कि भक्ति करने से ही भगवान् मिलेगा। भगवत्प्राप्ति कहो, भगवद् ज्ञान कहो, भगवत्सेवा कहो भक्ति से ही मिलेगी। अब प्रश्न हुआ भगवान् की भक्ति की जाय या गुरु की। भगवान् से डायरैक्ट कान्टैक्ट नहीं हो सकता। भगवान् स्वयं कहते हैं जो मेरे भक्त है वो वास्तव में मुझे उतने प्रिय नहीं है जितने मेरे भक्त के भक्त।

वेदव्यास कहते हैं-

ये मे भक्ता हि हे पार्थ न मे भक्तास्तु ते जना:।
मद्भक्तस्य ये भक्तास्ते मे भक्ततमा मता:॥

श्वेताश्वतरोपनिषत् में तो स्पष्ट ही लिखा है जैसी भक्ति भगवान् में हो वैसी ही गुरु में हो। अतः शास्त्र वेदसम्मत निर्विवाद सिद्ध सिद्धान्त है कि श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की भक्ति द्वारा जीव अपने परम चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन श्री आचार्य श्री ने अनेक जगह किया है। यह अवश्य ध्यान रहे कि दम्भी गुरु से सावधान रहना है।

प्रस्तुत पुस्तक में उनके कुछ प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं। पूर्णतया प्रयास किया गया है कि आचार्य श्री की दिव्य वाणी को यथार्थ रूप में ही प्रस्तुत किया जाय। अंग्रेजी भाषा के शब्द भी वैसे ही लिखे गये हैं जैसे उन्होंने बोले हैं।

Guru Bhakti - Hindi
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गुरु भक्ति - हिन्दी

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आखिर गुरु की आवश्यकता क्यों?
भाषा - हिन्दी

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विशेषताएं
  • गुरु भक्ति की सरलतम व्याख्या।
  • गुरु भक्ति की महिमा, शरणागति का विज्ञान, गुरु कृपा, वैराग्य का निरूपण आदि महत्वपूर्ण सिद्धांतों का समावेश।
  • अगर ऐसी भक्ति करोगी तो भगवान् 100% मिल जायेंगे।
  • गुरु भक्ति कैसे बढ़े? गुरु के चरणों में प्रीति बढ़ाने के उपाय।
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प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

वेद शास्त्र सभी एक स्वर से उद्घोषित करते हैं कि भक्ति करने से ही भगवान् मिलेगा। भगवत्प्राप्ति कहो, भगवद् ज्ञान कहो, भगवत्सेवा कहो भक्ति से ही मिलेगी। अब प्रश्न हुआ भगवान् की भक्ति की जाय या गुरु की। भगवान् से डायरैक्ट कान्टैक्ट नहीं हो सकता। भगवान् स्वयं कहते हैं जो मेरे भक्त है वो वास्तव में मुझे उतने प्रिय नहीं है जितने मेरे भक्त के भक्त।

वेदव्यास कहते हैं-

ये मे भक्ता हि हे पार्थ न मे भक्तास्तु ते जना:।
मद्भक्तस्य ये भक्तास्ते मे भक्ततमा मता:॥

श्वेताश्वतरोपनिषत् में तो स्पष्ट ही लिखा है जैसी भक्ति भगवान् में हो वैसी ही गुरु में हो। अतः शास्त्र वेदसम्मत निर्विवाद सिद्ध सिद्धान्त है कि श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की भक्ति द्वारा जीव अपने परम चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन श्री आचार्य श्री ने अनेक जगह किया है। यह अवश्य ध्यान रहे कि दम्भी गुरु से सावधान रहना है।

प्रस्तुत पुस्तक में उनके कुछ प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं। पूर्णतया प्रयास किया गया है कि आचार्य श्री की दिव्य वाणी को यथार्थ रूप में ही प्रस्तुत किया जाय। अंग्रेजी भाषा के शब्द भी वैसे ही लिखे गये हैं जैसे उन्होंने बोले हैं।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिसिद्धांत
विषयवस्तुगुरु - सच्चा आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक, तत्वज्ञान
फॉर्मेटपेपरबैक
वर्गीकरणसंकलन
लेखकजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या106
वजन (ग्राम)140
आकार14 सेमी X 22 सेमी X 1 सेमी
आई.एस.बी.एन.9789380661902

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