...संसार में आज सबसे प्रचलित अगर हिन्दू धर्म की कोई पुस्तक है विश्व में, तो केवल गीता। इंग्लैण्ड के एक फिलासफर ने लिखा है कि इंडिया के एक गाय के चरवाहे ने जो कि अंगूठा छाप था उसने एक किताब लिखी है, जिसके टक्कर में अनादिकाल से अब तक कोई किताब ही नहीं बनी। जब इन्डिया के बेपढ़े लिखे का यह हाल है तो पढ़े-लिखों का क्या हाल होगा...
गीता आज विश्व में सबसे अधिक पॉपुलर धार्मिक ग्रन्थ है। भारत की परमनिधि वेद है। जिसके कारण भारत सदैव विश्व के आध्यात्मिक गुरु के पद पर आसीन रहा है। इन वैदिक सिद्धान्तों, उपनिषदों का सार है गीता।
यह देश, काल, जाति, धर्म की सीमा से परे है और भारत धर्म निरपेक्ष देश है। अतः गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ के रूप में घोषित किया गया है। इसमें वर्णित सिद्धान्तों को दैनिक जीवन में किस प्रकार अपनाया जाय, इसका अत्यधिक विस्तृत निरूपण जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने प्रवचनों में एवं ग्रन्थों में अत्यधिक सरल भाषा में अनेको बार किया है।
यहाँ उनके द्वारा 17.9.1980 मुम्बई गीता भवन मे दिये गये प्रवचन को यथार्थ रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा है।उनके असंख्य प्रवचन हैं जिनमें उन्होंने गीता के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है।
…अपने गुरु, अपने मार्ग और अपने इष्टदेव में अनन्यता होनी चाहिये अर्थात् उन्हीं तक अपने जीवन को सीमित कर देना चाहिये। उसके बाहर न देखना है, न सुनना है, न सोचना है, न जानना है, न करना है और अगर कोई विरोधी वस्तु मिलती है तो उससे उदासीन हो जाना है- न राग, न द्वेष...।
अनन्य भक्ति और योगक्षेमं वहाम्यहम् एक दूसरे के पूरक हैं। अनन्य निष्काम भक्तों का ही योगक्षेम भगवान् वहन करते हैं। किन्तु अनन्यता का क्या अर्थ है अधिकतर लोग यह जानते ही नहीं। अत: वर्षों भक्ति करने के पश्चात् भी लाभ प्राप्त नहीं होता। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अनन्य भक्ति पर बहुत जोर दिया है। सभी आश्रयों को छोड़कर केवल हरि गुरु आश्रय ही ग्रहण करना है। किसी का भरोसा न करके केवल हरि गुरु कृपा का ही भरोसा करना है। ब्रजवासियों को यही सिद्धान्त समझाने के लिए भगवान् ने गोवर्धन लीला की, जिसका लक्ष्य ब्रजवासियों को अनन्य भक्ति का पाठ पढ़ाना ही था।
प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय से सम्बन्धित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिये गये प्रवचनों को संकलित किया गया है। जिज्ञासु साधक अवश्य लाभान्वित होंगे और साधना में तीव्र गति से आगे बढ़कर आशातीत आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करेंगे।
.... आप लोग जितने यहाँ बैठे हैं, करोड़ों बार इन्द्र बन चुके हैं। इन्द्र । लेकिन याद नहीं होगा। अब आप लोग क्या सोचते हैं, एक लाख मिल जाये तो काम बन जाये। अरे जब स्वर्ग सम्राट होकर काम नहीं बना आपका जिसके अंडर में कुबेर है तो ये लाख करोड़ अरब ये आप क्या प्लान बना रहे हैं। ये धोखा है। वो कोई और चीज है। वही गीता में ढूँढ़ना है, क्या है? चलो- इतने बड़े समुद्र से और थोड़े से रत्न निकालना है...।
भगवद् गीता के प्रमुख सिद्धान्त कर्मयोग का दैनिक जीवन में अभ्यास किस प्रकार किया जाय, इस पक्ष को प्रस्तुत पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। संसार की भागदौड़ करते हुये, गृहस्थी में रहते हुये मन किस प्रकार से भगवान् में लगाया जाय इस तथ्य को जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा अत्यधिक सरल भाषा में समझाया गया है।
कर्म से श्रेष्ठ ज्ञान है ज्ञान से श्रेष्ठ भक्ति और भक्ति की अंतिम अवस्था उसका जो मूल केन्द्र है वह शरणागति है। शरणागति के बिना भक्ति नहीं, भक्ति के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान के बिना कर्म नहीं। तो आधार है शरणागति । इसके बिना काम नहीं चलेगा गीता का प्रारम्भ, गीता का मध्य, गीता का एन्ड सब श्रीकृष्ण शरणागति पर ही निर्भर है।
गीता का प्रारम्भ मध्य और अन्त यही है कि केवल भगवान् की ही शरण में जाना है। धर्म अधर्म सब को छोड़कर केवल श्री कृष्ण शरणागति ग्रहण करके उनका ही निरन्तर चिन्तन, स्मरण यही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है। अनादि काल से हमने यही गलती की है मन को संसार में रखकर भगवान् का भजन किया।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने गीता के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने अधिकतर प्रवचनों में और ग्रन्थों में भी किया है। यहाँ उनके प्रवचनों के कुछ अंश संकलित किये गये हैं। हर साधक के लिए यह सिद्धान्त समझना परमावश्यक है कि श्रीकृष्ण की अनन्य शरणागति से ही लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
कृष्ण कृपा बिनु जाय नहीं माया अति बलवान। शरणागत पर हो कृपा यह गीता को ज्ञान।
गीता का उदघोष
तुम लोग चिन्ता न करो। तुम्हारे योगक्षेम को 'मैं' वहन करूँगा, डायरेक्ट ‘मैं’। जो तुमको नहीं मिला है मटीरियल या स्पिरिचुअल, वह सब मैं दूँगा और जो मिला है, उसकी मैं रक्षा करूँगा - फिजिकल भी और स्पिरिचुअल दोनों।
गीता में भगवान् ने आश्वासन दिया है कि जिनका मन निरन्तर मुझमें लगा रहता है उनका योगक्षेम मैं वहन करता हूँ।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
(गीता ९.२२)
मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता। इस सिद्धान्त से सम्बन्धित जगद्गुरु कृपालु जी महाराज द्वारा समय समय पर दिये गये प्रवचनों का संकलन किया गया है। शरणागति और भगवान् की अनन्य भक्ति यही गीता का प्रमुख का सिद्धान्त है। इस गूढ़ सिद्धान्त को आचार्य श्री ने इतनी सरल भाषा में प्रस्तुत किया है कि बिना पढ़ा लिखा गँवार भी समझ जाय।
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ॥ गीता ६.१६॥
वो कर्मयोगी हो, ज्ञानयोगी हो, भक्तियोगी हो तीनों के लिये ठीक-ठीक खाना, ठीक-ठीक व्यवहार, ठीक-ठीक सोना, ठीक-ठीक जागना। सबका नियम है। वैज्ञानिक भी और आध्यात्मिक भी। उसके अनुसार चलना होगा। अधिक सोये बीमारी हो जायेगी, कम सोये बीमारी हो जायेगी। अधिक खाया बीमारी हो जायेगी, कम खाया बीमारी हो जायेगी।
चाहे भौतिक उत्थान हो, चाहे आध्यात्मिक उत्थान हो, दोनों में शरीर स्वस्थ रहना परमावश्यक है और प्रथम इसकी आवश्यकता है। ‘शरीरमाद्यम्’ कहा है। पहले शरीर स्वस्थ करो तब आगे बढ़ो। नहीं तो तुम मन का निरोध करने चलोगे, वो चाहे महापुरुष में लगाओ, चाहे भगवान् में लगाओ और कहीं दर्द हो रहा है आपके शरीर में, तो मायाबद्ध दर्द का चिन्तन करेगा, महापुरुष और भगवान् का चिन्तन नहीं हो सकेगा।
प्रस्तुत पुस्तक में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समय समय पर दिये गये विभिन्न प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं। जिसमें उन्होंने भगवद् गीता के इस सिद्धान्त को अत्यधिक सरल भाषा में समझाया है कि भगवान् की भक्ति करने के लिए शरीर को स्वस्थ रखना परमावश्यक है तदर्थ जो भी आवश्यक विटामिन प्रोटीन इत्यादि है वह शरीर को देना होगग। अन्यथा शरीर बीमार हो जायेगा और बीमार शरीर से भगवान् का भी ध्यान नहीं हो पायेगा। गीता के निम्नलिखित श्लोकों की व्याख्या विभिन्न प्रकार से की गई है -
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥
(गीता ६.१६, १७)
Bhagavad Gita Jnana (Set of 6) - Hindiप्रकार | विक्रेता | मूल्य | मात्रा |
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...संसार में आज सबसे प्रचलित अगर हिन्दू धर्म की कोई पुस्तक है विश्व में, तो केवल गीता। इंग्लैण्ड के एक फिलासफर ने लिखा है कि इंडिया के एक गाय के चरवाहे ने जो कि अंगूठा छाप था उसने एक किताब लिखी है, जिसके टक्कर में अनादिकाल से अब तक कोई किताब ही नहीं बनी। जब इन्डिया के बेपढ़े लिखे का यह हाल है तो पढ़े-लिखों का क्या हाल होगा...
गीता आज विश्व में सबसे अधिक पॉपुलर धार्मिक ग्रन्थ है। भारत की परमनिधि वेद है। जिसके कारण भारत सदैव विश्व के आध्यात्मिक गुरु के पद पर आसीन रहा है। इन वैदिक सिद्धान्तों, उपनिषदों का सार है गीता।
यह देश, काल, जाति, धर्म की सीमा से परे है और भारत धर्म निरपेक्ष देश है। अतः गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ के रूप में घोषित किया गया है। इसमें वर्णित सिद्धान्तों को दैनिक जीवन में किस प्रकार अपनाया जाय, इसका अत्यधिक विस्तृत निरूपण जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने प्रवचनों में एवं ग्रन्थों में अत्यधिक सरल भाषा में अनेको बार किया है।
यहाँ उनके द्वारा 17.9.1980 मुम्बई गीता भवन मे दिये गये प्रवचन को यथार्थ रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा है।उनके असंख्य प्रवचन हैं जिनमें उन्होंने गीता के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है।
…अपने गुरु, अपने मार्ग और अपने इष्टदेव में अनन्यता होनी चाहिये अर्थात् उन्हीं तक अपने जीवन को सीमित कर देना चाहिये। उसके बाहर न देखना है, न सुनना है, न सोचना है, न जानना है, न करना है और अगर कोई विरोधी वस्तु मिलती है तो उससे उदासीन हो जाना है- न राग, न द्वेष...।
अनन्य भक्ति और योगक्षेमं वहाम्यहम् एक दूसरे के पूरक हैं। अनन्य निष्काम भक्तों का ही योगक्षेम भगवान् वहन करते हैं। किन्तु अनन्यता का क्या अर्थ है अधिकतर लोग यह जानते ही नहीं। अत: वर्षों भक्ति करने के पश्चात् भी लाभ प्राप्त नहीं होता। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अनन्य भक्ति पर बहुत जोर दिया है। सभी आश्रयों को छोड़कर केवल हरि गुरु आश्रय ही ग्रहण करना है। किसी का भरोसा न करके केवल हरि गुरु कृपा का ही भरोसा करना है। ब्रजवासियों को यही सिद्धान्त समझाने के लिए भगवान् ने गोवर्धन लीला की, जिसका लक्ष्य ब्रजवासियों को अनन्य भक्ति का पाठ पढ़ाना ही था।
प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय से सम्बन्धित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिये गये प्रवचनों को संकलित किया गया है। जिज्ञासु साधक अवश्य लाभान्वित होंगे और साधना में तीव्र गति से आगे बढ़कर आशातीत आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करेंगे।
.... आप लोग जितने यहाँ बैठे हैं, करोड़ों बार इन्द्र बन चुके हैं। इन्द्र । लेकिन याद नहीं होगा। अब आप लोग क्या सोचते हैं, एक लाख मिल जाये तो काम बन जाये। अरे जब स्वर्ग सम्राट होकर काम नहीं बना आपका जिसके अंडर में कुबेर है तो ये लाख करोड़ अरब ये आप क्या प्लान बना रहे हैं। ये धोखा है। वो कोई और चीज है। वही गीता में ढूँढ़ना है, क्या है? चलो- इतने बड़े समुद्र से और थोड़े से रत्न निकालना है...।
भगवद् गीता के प्रमुख सिद्धान्त कर्मयोग का दैनिक जीवन में अभ्यास किस प्रकार किया जाय, इस पक्ष को प्रस्तुत पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। संसार की भागदौड़ करते हुये, गृहस्थी में रहते हुये मन किस प्रकार से भगवान् में लगाया जाय इस तथ्य को जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा अत्यधिक सरल भाषा में समझाया गया है।
कर्म से श्रेष्ठ ज्ञान है ज्ञान से श्रेष्ठ भक्ति और भक्ति की अंतिम अवस्था उसका जो मूल केन्द्र है वह शरणागति है। शरणागति के बिना भक्ति नहीं, भक्ति के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान के बिना कर्म नहीं। तो आधार है शरणागति । इसके बिना काम नहीं चलेगा गीता का प्रारम्भ, गीता का मध्य, गीता का एन्ड सब श्रीकृष्ण शरणागति पर ही निर्भर है।
गीता का प्रारम्भ मध्य और अन्त यही है कि केवल भगवान् की ही शरण में जाना है। धर्म अधर्म सब को छोड़कर केवल श्री कृष्ण शरणागति ग्रहण करके उनका ही निरन्तर चिन्तन, स्मरण यही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है। अनादि काल से हमने यही गलती की है मन को संसार में रखकर भगवान् का भजन किया।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने गीता के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने अधिकतर प्रवचनों में और ग्रन्थों में भी किया है। यहाँ उनके प्रवचनों के कुछ अंश संकलित किये गये हैं। हर साधक के लिए यह सिद्धान्त समझना परमावश्यक है कि श्रीकृष्ण की अनन्य शरणागति से ही लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
कृष्ण कृपा बिनु जाय नहीं माया अति बलवान। शरणागत पर हो कृपा यह गीता को ज्ञान।
गीता का उदघोष
तुम लोग चिन्ता न करो। तुम्हारे योगक्षेम को 'मैं' वहन करूँगा, डायरेक्ट ‘मैं’। जो तुमको नहीं मिला है मटीरियल या स्पिरिचुअल, वह सब मैं दूँगा और जो मिला है, उसकी मैं रक्षा करूँगा - फिजिकल भी और स्पिरिचुअल दोनों।
गीता में भगवान् ने आश्वासन दिया है कि जिनका मन निरन्तर मुझमें लगा रहता है उनका योगक्षेम मैं वहन करता हूँ।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
(गीता ९.२२)
मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता। इस सिद्धान्त से सम्बन्धित जगद्गुरु कृपालु जी महाराज द्वारा समय समय पर दिये गये प्रवचनों का संकलन किया गया है। शरणागति और भगवान् की अनन्य भक्ति यही गीता का प्रमुख का सिद्धान्त है। इस गूढ़ सिद्धान्त को आचार्य श्री ने इतनी सरल भाषा में प्रस्तुत किया है कि बिना पढ़ा लिखा गँवार भी समझ जाय।
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ॥ गीता ६.१६॥
वो कर्मयोगी हो, ज्ञानयोगी हो, भक्तियोगी हो तीनों के लिये ठीक-ठीक खाना, ठीक-ठीक व्यवहार, ठीक-ठीक सोना, ठीक-ठीक जागना। सबका नियम है। वैज्ञानिक भी और आध्यात्मिक भी। उसके अनुसार चलना होगा। अधिक सोये बीमारी हो जायेगी, कम सोये बीमारी हो जायेगी। अधिक खाया बीमारी हो जायेगी, कम खाया बीमारी हो जायेगी।
चाहे भौतिक उत्थान हो, चाहे आध्यात्मिक उत्थान हो, दोनों में शरीर स्वस्थ रहना परमावश्यक है और प्रथम इसकी आवश्यकता है। ‘शरीरमाद्यम्’ कहा है। पहले शरीर स्वस्थ करो तब आगे बढ़ो। नहीं तो तुम मन का निरोध करने चलोगे, वो चाहे महापुरुष में लगाओ, चाहे भगवान् में लगाओ और कहीं दर्द हो रहा है आपके शरीर में, तो मायाबद्ध दर्द का चिन्तन करेगा, महापुरुष और भगवान् का चिन्तन नहीं हो सकेगा।
प्रस्तुत पुस्तक में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समय समय पर दिये गये विभिन्न प्रवचनों के अंश संकलित किये गये हैं। जिसमें उन्होंने भगवद् गीता के इस सिद्धान्त को अत्यधिक सरल भाषा में समझाया है कि भगवान् की भक्ति करने के लिए शरीर को स्वस्थ रखना परमावश्यक है तदर्थ जो भी आवश्यक विटामिन प्रोटीन इत्यादि है वह शरीर को देना होगग। अन्यथा शरीर बीमार हो जायेगा और बीमार शरीर से भगवान् का भी ध्यान नहीं हो पायेगा। गीता के निम्नलिखित श्लोकों की व्याख्या विभिन्न प्रकार से की गई है -
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥
(गीता ६.१६, १७)
भाषा | हिन्दी |
शैली / रचना-पद्धति | सिद्धांत |
विषयवस्तु | तत्वज्ञान, गीता ज्ञान |
फॉर्मेट | पेपरबैक |
वर्गीकरण | संकलन |
लेखक | जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
प्रकाशक | राधा गोविंद समिति |
पृष्ठों की संख्या | 542 |
वजन (ग्राम) | 510 |
आकार | 18 सेमी X 12 सेमी X 4 सेमी |
Could you please translate in English language. 🙏May 28, 2022 5:13:45 PM
The delivery was beyond excellence. Got the books in a single day. Thank you everyone. The explanations in the book by Shri Kripaluji Maharaj is beyond description. He is the reservoir of infinite knowledge. A must read for everyone.Apr 26, 2022 7:59:42 AM
Immensely insightfulMar 30, 2022 12:53:05 PM
Very very good book 📚Mar 19, 2022 11:19:23 AM