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9789390373215 61f0217de7ee1e2c42ec286d भगवद् गीता ज्ञान - अनन्य भक्ति - हिन्दी https://www.jkpliterature.org.in/s/61949a48ba23e5af80a5cfdd/61f02cccf9467244d050d314/1gita-gyan-series-2.jpg

…अपने गुरु, अपने मार्ग और अपने इष्टदेव में अनन्यता होनी चाहिये अर्थात् उन्हीं तक अपने जीवन को सीमित कर देना चाहिये। उसके बाहर न देखना है, न सुनना है, न सोचना है, न जानना है, न करना है और अगर कोई विरोधी वस्तु मिलती है तो उससे उदासीन हो जाना है- न राग, न द्वेष...।

अनन्य भक्ति और योगक्षेमं वहाम्यहम् एक दूसरे के पूरक हैं। अनन्य निष्काम भक्तों का ही योगक्षेम भगवान् वहन करते हैं। किन्तु अनन्यता का क्या अर्थ है अधिकतर लोग यह जानते ही नहीं। अत: वर्षों भक्ति करने के पश्चात् भी लाभ प्राप्त नहीं होता। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अनन्य भक्ति पर बहुत जोर दिया है। सभी आश्रयों को छोड़कर केवल हरि गुरु आश्रय ही ग्रहण करना है। किसी का भरोसा न करके केवल हरि गुरु कृपा का ही भरोसा करना है। ब्रजवासियों को यही सिद्धान्त समझाने के लिए भगवान् ने गोवर्धन लीला की, जिसका लक्ष्य ब्रजवासियों को अनन्य भक्ति का पाठ पढ़ाना ही था।

प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय से सम्बन्धित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिये गये प्रवचनों को संकलित किया गया है। जिज्ञासु साधक अवश्य लाभान्वित होंगे और साधना में तीव्र गति से आगे बढ़कर आशातीत आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करेंगे।

Bhagavad Gita Jnana Ananya Bhakti Vol 2- Hindi
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भगवद् गीता ज्ञान - अनन्य भक्ति - हिन्दी

भगवद् गीता ज्ञान - अनन्य भक्ति - हिन्दी

भगवान् की वो क्या शर्त है जो हम नहीं जानते?
भाषा - हिन्दी

₹85
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विशेषताएं
  • भक्ति में अनन्यता लाने के लिये गीता की ये बात जान लो।
  • क्या कारण था कि अर्जुन को 18 अध्याय की गीता सुनाना पड़ा? आज ही जान लो।
  • भगवान् की वो क्या शर्त है जो हम नहीं जानते?
  • भक्ति में अनन्यता क्या है और वो कैसे मिलेगी जानिये जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के आसान शब्दों में।
  • केवल तीन बातों पर ध्यान देना है अनन्यता अपने आप आ जायेगी।
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प्रकारविक्रेतामूल्यमात्रा

विवरण

…अपने गुरु, अपने मार्ग और अपने इष्टदेव में अनन्यता होनी चाहिये अर्थात् उन्हीं तक अपने जीवन को सीमित कर देना चाहिये। उसके बाहर न देखना है, न सुनना है, न सोचना है, न जानना है, न करना है और अगर कोई विरोधी वस्तु मिलती है तो उससे उदासीन हो जाना है- न राग, न द्वेष...।

अनन्य भक्ति और योगक्षेमं वहाम्यहम् एक दूसरे के पूरक हैं। अनन्य निष्काम भक्तों का ही योगक्षेम भगवान् वहन करते हैं। किन्तु अनन्यता का क्या अर्थ है अधिकतर लोग यह जानते ही नहीं। अत: वर्षों भक्ति करने के पश्चात् भी लाभ प्राप्त नहीं होता। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अनन्य भक्ति पर बहुत जोर दिया है। सभी आश्रयों को छोड़कर केवल हरि गुरु आश्रय ही ग्रहण करना है। किसी का भरोसा न करके केवल हरि गुरु कृपा का ही भरोसा करना है। ब्रजवासियों को यही सिद्धान्त समझाने के लिए भगवान् ने गोवर्धन लीला की, जिसका लक्ष्य ब्रजवासियों को अनन्य भक्ति का पाठ पढ़ाना ही था।

प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय से सम्बन्धित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिये गये प्रवचनों को संकलित किया गया है। जिज्ञासु साधक अवश्य लाभान्वित होंगे और साधना में तीव्र गति से आगे बढ़कर आशातीत आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करेंगे।

विशेष विवरण

भाषाहिन्दी
शैली / रचना-पद्धतिसिद्धांत
विषयवस्तुतत्वज्ञान, गीता ज्ञान
फॉर्मेटपेपरबैक
वर्गीकरणसंकलन
लेखकजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रकाशकराधा गोविंद समिति
पृष्ठों की संख्या80
वजन (ग्राम)79
आकार18 सेमी X 12 सेमी X 0.8 सेमी
आई.एस.बी.एन.9789390373215

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