कृपालु भक्तियोग तत्त्वदर्शन
पाठक महानुभाव!
हमारा यह 'तत्त्वदर्शन' समस्त शास्त्रों वेदों, पुराणों आदि से संबद्ध है। प्राय: हमारे शास्त्रों में पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को ही लक्ष्य बनाकर सिद्धांत लिखे गये हैं। किंतु मैंने प्रमुख रूप से पंचम पुरुषार्थ श्री राधाकृष्ण प्रेम को ही लक्ष्य बना कर सब रचनायें लिखी हैं। अर्थात् यद्यपि श्रीकृष्ण से पुरुषार्थ चतुष्टय तो प्राप्त होता ही है, किंतु दिव्य प्रेम प्राप्ति का लक्ष्य सर्वोपरि है।
प्राय: सभी जगद्गुरुओं ने संस्कृत भाषा में ही भाष्यों द्वारा अपना मत व्यक्त किया है, किंतु मैंने वर्तमान विश्व की स्थिति के अनुसार हिंदी, ब्रजभाषा आदि मिश्रित भाषाओं में ही अपना मत प्रकट किया है ताकि जन साधारण को विशेष लाभ हो ।
प्राचीन आचार्यों ने तो अधिकारियों को ही दीक्षा दी है, किंतु पश्चात् विरूप होकर सभी को दीक्षा आदि दी जाने लगी। मैंने एक को भी दीक्षा नहीं दी। मेरे मत में आनंद प्राप्ति का ही सब का स्वाभाविक लक्ष्य है। और आनंद एवं श्रीकृष्ण भगवान् पर्यायवाची हैं, अत: सब श्रीकृष्ण संप्रदाय के ही हैं। दूसरा संप्रदाय माया का है किंतु उसे अज्ञानवश लोग चाहते हैं।
मेरे साहित्य से यदि किसी को भी लाभ होगा तो मेरा सौभाग्य होगा। यदि किसी को कष्ट होगा तो वे क्षमा करेंगे।
धन्यवाद।
जगद्गुरु कृपालु