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देना प्रेम लेना काम

  • लेखक राधा गोविंद समिति
  • •  Sep 25, 2022

देना प्रेम लेना काम गोविन्द राधे।
लेना देना दोनों व्यापार बता दे।।

समस्त विश्व में तीन प्रकार के लोग होते हैं। कुछ देना-देना जानते हैं। कुछ लेना-लेना जानते हैं। और कुछ लेना-देना जानते हैं। तो लेना-लेना जानने वालों को संसार में बुरा कहते हैं। स्वार्थी कहते हैं। अनेक प्रकार की गन्दी उपाधियाँ हैं उनके लिए। और वह लेना-लेना करने वाले अनेक प्रकार के पाप करते हैं। क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य है लेना। लेकिन नम्बर दो लेना-देना ऐसे लोगों को लोग मनुष्य कहते हैं। इंसान। मानवता। ये खाली लेना नहीं करता, लेना-देना दोनों करता है। इस क्लास के लोग हमारे संसार में थोड़ा आराम से रहते हैं। वास्तविक आराम तो भगवान् के यहाँ है, लेकिन कुछ थोड़ा बहुत टेम्पररी आराम में रहते हैं। जैसे माँ है, बाप है, भाई है, बहन है, बेटा-बेटी है, पड़ोसी है। हमको सबसे व्यवहार करना पड़ता है। तो अगर हम उनके लिए कुछ न करें तो वे भी हमारे लिए कुछ न करेंगे। और अगर हम उनके बीमार होने पर भाग-दौड़ करते हैं, दवा देते हैं, जागते हैं रात में, तो हमारे बीमार होने पर वह भी करेगा। कोई-कोई कृतघ्नी भी होते हैं, लेकिन आमतौर पर नहीं। हमने किसी की लड़की की शादी में एक लाख का उपहार दिया। तो वह नोट रखता है। हमारी लड़की की शादी में वह भी एक लाख का देगा। ये व्यवहार जगत कहते हैं इसको। इतनी दुकानें खुली होती हैं। ये कोई कृपा नहीं करता है आपके ऊपर। जो दुकान खोलकर के १० बजे सफाई करके पंखा चलाकर, गद्दी बिछाकर आपका इंतज़ार करता है। आप दुकान के सामने खड़े हुए। “आइये आइये!”, “अरे भई हमें क्यों बुला रहे हों?”, “आपको कुछ लेना है?”, “नहीं ऐसे देख रहा था”। “अच्छा अच्छा”। उदासीन हो गया एक सैकेण्ड में। अगर और देर तक खड़े रहे “देखिये साहब, आप आगे जाइये न। यहाँ क्यों भीड़ लगा रखा है!” और अगर उसने आकर कहा “हमको साड़ी चाहिए”। “आइये आइये”।

अब देखिये देना-लेना कितना बढ़िया होता है। कैसी साड़ी चाहिए? वह लड़की की शादी है, उसमें अच्छी ही चाहिए। उसने दस-बीस साड़ियाँ बखेर दिया आगे। “नहीं नहीं!, हमको तो एक साड़ी चाहिए”। “अरे, तो एक ही लीजियेगा, लेकिन देख तो लीजिये”। वह चालाक है व्यापारी कि अगर दस-बारह साड़ियाँ देखेगा तो कोई न कोई पसन्द आ जाएगी। और जब पसन्द आ जाएगी तो दस रुपया अधिक अगर हम माँगेंगे तो भी दे देगा। भाव-आव हुआ। नहीं बात बनी अगर “तो ठीक है और देख लीजिये आप”। यह लेन-देन कहलाता है। उसको रुपया चाहिए, हमको सामान चाहिए। इस प्रकार पूरा संसार चल रहा है। हर देश की गवर्नमेंट चल रही है। एक दस  से पांच तक काम करता है, तब उसको पे मिलती है उसकी नॉलेज के अनुसार। ये लेना-देना है। अगर इसमें लेना का बैलेंस बढ़ गया तो फिर खट्ट-पट्ट हुई, फिर लड़ाई हुई। एक एक सैकेण्ड में होती है।

और ये तीसरी चीज़ जो है देना यह तो कोई नहीं जानता या स्पिरिचुअल मैन ही जानता है। जो तत्त्वज्ञानी है और प्रेम चाहता है, दिव्य प्रेम, स्पिरिचुअल हैपिनेस, दिव्यानन्द भगवान् वाला उसको पाठ पढ़ाया जाता है कि तुमको देना-देना सीखना होगा। यह नया पाठ है। तुमने अभी तक ये सीखा नहीं। अब सीखो। देना-देना गुरु के प्रति, भगवान् के प्रति। संसार में नहीं। संसार में लेना-देना और हरि-गुरु के यहाँ देना-देना। क्योंकि उनको हमसे कुछ नहीं चाहिए। हमको उनसे चाहिए। उसी को निष्काम प्रेम कहते हैं। हमारे संसार में आज जितनी भी उपासना हो रही है, सब लेने की बीमारी। मन्दिरों में जाते हैं, पहाड़ों पर देवी जी हैं, शंकर जी हैं, हनुमान जी हैं। मन्नत। हमारी ये कामना पूरी कर दीजिये। अगर बड़ी कृपा की तो देवी जी तुमको चुनरी चढ़ाएँगे। चुनरी! देवी जी के पास चुनरी नहीं है! तुम चुनरी चढ़ाओगे सौ रूपये की और चाहते हो बेटा मर रहा है, जी जाये। यानी देना १%, लेना ९९%। ये नहीं चलेगा, इसीलिए हम वहीं के वहीं खड़े हैं। हमारी न आत्मशक्ति बढ़ती है, न हमारा भगवत्प्रेम बढ़ता है, न अन्तःकरण शुद्ध होता है। और किये जा रहे है बहुत उपासना। ये साहब बड़े भक्त आदमी हैं। ये बड़े श्रद्धालु हैं। अरे इनको तत्त्वज्ञान तक नहीं है ये भक्त-वक्त क्या हैं?

ये दिव्य वस्तु चाहें - पहला तत्त्वज्ञान। “संसार में सुख है कि नहीं?” “नहीं है”। “ये जानते हो?” “हो”। तो फिर संसार क्यों मांगते हो भगवान् से? क्यों माँगा? अभी कम नशे में हो। अरबपति हो जाओगे तो और नशे में हो जाओगे फिर। तो अगर तुम पहला अध्याय भी जानते हो कि संसार में सुख नहीं है, भगवान् में है। तो संसार की कामना समाप्त। लेने की बात ख़तम। अगर लेने की बात आई तो लड़ाई हुई. बच नहीं सकता कोई। स्त्री, पति, बाप, बेटा, भाई-भाई कोई भी विश्व में हो, आज नहीं कल लड़ाई होगी। होगी। देखो एक दिन लड़के-लड़की कहते हैं न “हम तुम्हारे बिना मर जायेंगे। दोनों साथ जियेंगे और साथ ही मरेंगे”। और साल भर बाद तलाक हो जाता है । ये कैसा प्रेम है जी? यह लेने-लेने वाला प्रेम है। वह कहता है हमका दो। वह कहती है हमको दो। बस लड़ गए।

और जब हम भगवान् और गुरु के शरणागत होते हैं, तो शरणागत माने अपनी बुद्धि न लगाना। अपनी बुद्धि लगाया तो शरणागति के खिलाफ हो गया। अब वह अनन्त जन्म गुरु मिला करे उसको। और गुरु के पास बैठा रहे वह चौबीस घंटे। लेकिन जीरो बट्टे सौ मिलेगा, बल्कि और अपराध करने का खाता खुलता जायेगा, नामापराध। गुरु से झूठ बोला, गुरु से छुपाया। अनन्त काल से हमको जो अनन्त गुरु मिले, हमने लक्ष्य नहीं प्राप्त किया यहाँ रीजन है। चोरी। चोरी पाप करते हैं। गुरु के खिलाफ सोचते हैं। उनके कार्यों में हस्तक्षेप, नुक्ताचीनी, कमॅटरी और तर्क-वितर्क-कुतर्क-अतितर्क। अपनी बुद्धि की सीमा नहीं सोचते हम कहाँ हैं और किसके लिए सोच रहे हैं। तो वह कभी भी शरणागत नहीं होंगे।

और अगर हमने देना-देना सीखा है तो फिर चाहे गुरु उल्टा व्यवहार करे, भगवान् उल्टा व्यवहार करें, हमारा प्रेम कम नहीं होगा। हम भगवान के दर्शन करने गए, हमारे घर में डाका पड़ गया। हम सन्त के दर्शन करने गए कि हमारा बेटा बीमार था ये अच्छा हो जाये, मर गया। “हेह कुछ नहीं, न सन्त है ये” और भगवान् के प्रति भी दुर्भावना हो गई। ये सब होता रहता है। जो देना नहीं जानते। इसलिए देना-देना सीखना होगा। इसका अभ्यास करना होगा। अभ्यास से बनेगा। एक सैकेण्ड में नहीं बन जायेगा, क्योंकि बहुत दिनों से, अनादिकाल से लेना सीखा है हमने। अभ्यास करना होगा। तो देना-देना सीखना है, अभ्यास करना है। माँगना नहीं है भगवान् से, गुरु से कुछ। क्या माँगेंगे? संसार? यह तो डिसीजन हो चुका यहाँ सुख नहीं है। अगर माँगने का शौक भी है, उनका प्रेम, उनका दिव्य दर्शन, उनका दिव्य आनन्द बस। इधर के एरिया में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष नहीं माँगना है। ये तीन सिद्धान्त सदा मस्तिष्क में रखकर चलना है।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रवचन।
8 दिसंबर 2009


5 कमेंट

'Dakshina' or 'to give' has been considered great in our Hindu-text.The highest order of giving is to give our whole self to the lotus feet of our sadguru which means we should surrender ourself to him as he demands nothing except our selfless love…...

By: Tsharma
Sep 29, 2022   प्रत्युत्तर दें

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🌹❣️🌹 With the world it is only give and take. With God and Guru, it is only give and give.🌹❣️🌹

By: Rs
Sep 29, 2022   प्रत्युत्तर दें

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🥀🥀🥀 We should ask God and Guru for their divine love, their divine vision their divine bliss. The form of giving we do in relation to God and Guru is called selfless love.🥀🥀🥀

By: Dinesh Sharma
Sep 29, 2022   प्रत्युत्तर दें

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To attain our goal related to God, we must practice. We must learn how to give, and we must practice giving. We should not ask for anything from God and Guru.

By: Dinesh Sharma
Sep 29, 2022   प्रत्युत्तर दें

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Surrender to God and Guru means not applying our intellect.🙏🙏

By: Dhruv Sharma
Sep 29, 2022   प्रत्युत्तर दें

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