इस बार होली का यह अंक हम सभी को अतीत की स्मृतियों में डुबा देता है। भक्ति तत्त्व को प्रकाशित करने वाले भक्तियोग रसावतार आदर्श जगद्गुरु का कृतित्व और व्यक्तित्व मानस पटल पर उभर आता है। एक असह्य वेदना, एक टीस, एक दर्द का अहसास होता है। एक प्रश्न चिह्न अंकित हो जाता है कि क्या हमारे सर्वस्व, हमारे आराध्य, हमारे मध्य नहीं हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? वे तो भक्ति का ही स्वरूप थे। भक्ति तो भगवान् की शक्ति है और भक्ति का ही प्राकट्य जगद्गुरु रूप में भक्ति-धाम में हुआ और भक्ति-धाम में ही समाहित भी हुआ। यह तो सनातन तत्त्व है। किन्तु भक्ति के साकार स्वरूप का अदर्शन, इसे लीला संवरण कहा जाय या प्रकट लीला का विराम। कोई भी शब्द उपयुक्त नहीं लगता। क्योंकि विश्वास ही नहीं होता कि यह लीला घटित हुई। अत्यधिक संक्षिप्त रूप में प्रकाशित की जा रही है। लेखनी अत्यधिक कठोर हो गई है जो कोमल भावुक भक्तों के आंसूओं की धारा को व्यक्त कर रही है।
Sadhan Sadhya - Holi 2014VARIANT | SELLER | PRICE | QUANTITY |
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इस बार होली का यह अंक हम सभी को अतीत की स्मृतियों में डुबा देता है। भक्ति तत्त्व को प्रकाशित करने वाले भक्तियोग रसावतार आदर्श जगद्गुरु का कृतित्व और व्यक्तित्व मानस पटल पर उभर आता है। एक असह्य वेदना, एक टीस, एक दर्द का अहसास होता है। एक प्रश्न चिह्न अंकित हो जाता है कि क्या हमारे सर्वस्व, हमारे आराध्य, हमारे मध्य नहीं हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? वे तो भक्ति का ही स्वरूप थे। भक्ति तो भगवान् की शक्ति है और भक्ति का ही प्राकट्य जगद्गुरु रूप में भक्ति-धाम में हुआ और भक्ति-धाम में ही समाहित भी हुआ। यह तो सनातन तत्त्व है। किन्तु भक्ति के साकार स्वरूप का अदर्शन, इसे लीला संवरण कहा जाय या प्रकट लीला का विराम। कोई भी शब्द उपयुक्त नहीं लगता। क्योंकि विश्वास ही नहीं होता कि यह लीला घटित हुई। अत्यधिक संक्षिप्त रूप में प्रकाशित की जा रही है। लेखनी अत्यधिक कठोर हो गई है जो कोमल भावुक भक्तों के आंसूओं की धारा को व्यक्त कर रही है।
Language | Hindi |
Genre | Spiritual Magazine |
Format | Magazine |
Author | HH Dr Shyama Tripathi |
Publisher | Radha Govind Samiti |
Dimension | 21.5cm X 28cm X 0.4cm |