जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने सभी पूर्ववर्ती जगद्गुरुओं के सिद्धान्तों का वेद शास्त्र सम्मत सुन्दर समन्वय करते हुये भक्तियोग की उपादेयता एवं विलक्षणता पर प्रकाश डाला है।
श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण
गुरुवर ने तीन प्रकार की भक्ति श्रवण, कीर्तन, स्मरण पर बल दिया है इसमें भी स्मरण भक्ति को समस्त साधनाओं का प्राण बताया है । भक्ति के अनासंग व सासंग भेद स्पष्ट करते हुये रागानुगा भक्ति, रागानुगा में भाव भक्ति तथा दास्य, सख्य, वात्सल्य व माधुर्य भावों में माधुर्य भाव का लक्ष्य निर्धारित किया है।
निखिल दर्शन समन्वयाचार्य
श्री महाराज जी ने आदि जगद्गुरु श्री शंकराचार्य पर आरोपित मायावादी छवि का खण्डन कर न केवल उनको कृष्ण भक्ति के रूप में महिमा मन्डित किया है वरन उनके श्री कृष्ण गुणगान 'यमुना निकट तटस्थित --सुरभीमं यादवं नमत।' को जगद्गुरु कृपालु परिषत् के सभी केन्द्रों में दैनिक प्रार्थना में स्थान भी दिया है।
वेदमार्ग प्रतिष्ठापनाचार्य
हमारे गुरुदेव ने जगद्गुरुओं की परम्परा के अनुरूप बिना अन्तःकरण शुद्धि के कान फूंक कर गुरु मंत्र प्रदान किये जाने सम्बन्धी अन्धविश्वास का खण्डन किया है तथा कुल, जाति, वर्ण व धर्म के भेदभाव से परे विशुद्धा भक्ति के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। नोट-विस्तार हेतु गुरु मंत्र नामक पुस्तक पढ़ें
सनातन धर्म प्रतिष्ठापन सत्संप्रदाय परमाचार्य
गुरुश्रेष्ठ ने नास्तिकवाद का सप्रमाण खण्डन कर प्रेय व श्रेय मार्ग के मध्य श्रेय मार्ग की श्रेष्ठता को सिद्ध किया है। श्रेय मार्ग में भी विभिन्न सम्प्रदायों के नाम पर फैली भ्राँति का निवारण कर यह प्रतिपादित किया कि सम्प्रदाय केवल दो हैं । एक भगवत्सम्प्रदाय एक माया का सम्प्रदाय । जीव या तो भगवान् की ओर जायेगा या माया की ओर । जो यह मानता है कि भगवान् को जानकर ही शाश्वत असीम आनन्द की प्राप्ति होगी वह भगवत्सम्प्रदाय वाला कहलायेगा और जो यह मानता है कि संसार में आनन्द है वह माया के सम्प्रदाय वाला कहलायेगा।
भगवदनन्त श्रीविभूषित
आचार्यवर समस्त जीवों को बरबस ब्रजरस में सराबोर करके अपनी अहैतुकी करुणा का परिचय देकर अपने कृपालु नाम को चरितार्थ कर रहे हैं।
पढ़ें - जगद्गुरूत्तम Jagadguruttam